पहाड़ पर संस्कार की पाठशाला : सबसे पहला न्यूंद्रा दूल्हा-दुल्हन के ननिहाल को, महिलाएं नहीं देती न्यूंद्रा
सुदरनगर से पवन चैहान की रिपोर्ट
भारतीय समाज में ऐसी बहुत सी रस्में और रिवाज हैं, जिन्हें देखकर, समझकर बड़े ही आराम से कहा जा सकता है कि ये रस्में, ये रिवाज हमारे बुजुर्गो की सैकड़ों वर्षों के अनुभवों की देन है। उन्होंने सब भला-बुरा देखकर इन्हें अपने समाज की बेहतरी के लिए संजोया है। आज इन्ही की बदौलत हम अपने आप को एक-दूसरे के साथ जोड़े रखते हैं। ऐसी ही रस्मों में से एक है “न्यंूद्रा” यर न्यूंद्र। न्यूंद्रा अर्थात निमंत्रण। हिमाचल प्रदेश के हर जिले में इसे अपने-अपने तरीके से निभाया जाता है। मंडी जिला की मंडयाली बोली में इस निमंत्रण शब्द को ‘न्यंूद्रा’ कहा जाता है। इस रस्म का चलन तब हुआ जब हमें किसी को आमंत्रित करने की आवश्यकता हुई। आज की तरह उस समय कोई निमंत्रण पत्र, व्हाट्सएप या ई मेल सुविधा नहीं थी।
न्यूंद्रा के लिए सिंदूर का प्रयोग
न्यूंद्रा यानी निमंत्रण देने के लिए सिंदूर का प्रयोग किया जाता है। सिंदूर शुभ का रंग माना जाता है, इसलिए इस कार्य के लिए सिंदूर को मान्यता मिली है। न्यूंद्रा की रस्म सिर्फ शादी के लिए ही निभाई जाती है। अन्य किसी जन्मदिन, गंत्रयाला (नामकरण) समारोह, प्रीतिभोज या उत्सव आदि के लिए नहीं। इस रस्म को घर के मुख्य द्वार की चैखट की ऊपरी क्षैतिज वाली लकड़ी पर सिंदूर का टीका लगाकर निभाया जाता है। द्वार पर टीका लगाने के पश्चात घर में जो पुरुष उस समय मौजूद होता है उसके माथे पर सिंदूर का टीका लगाकर पूरे परिवार को शादी का निमंत्रण दिया जाता है।
न्यंूद्रा के साथ पैर छूने का चलन
बता दें कि यदि न्यंूद्रा देने वाला उम्र में बड़ा हो तो उक्तपरिवार का व्यक्तिउसके पांव छुएगा और यदि न्यंूद्रा देने वाला उक्तपरिवार वाले व्यक्तिसे छोटा हो तो वह परिवार के उस बड़े-बुजुर्ग के पांव छुएगा। यह संस्कार की पाठशाला का एक अभिन्न हिस्सा है। यदि घर में उस समय कोई पुरुष न हो तो महिला को यह सिंदूर का टीका नहीं लगाया जाता। सिर्फ घर के मुख्य दरवाजे पर ही टीका लगाकर महिला को शादी की तिथियां बताकर परिवार को आने का निमंत्रण दिया जाता है।
मुख्य द्वार पर टीका लगाकर न्यूंद्रा
यदि न्यूंद्रा देने आए व्यक्तिको घर में कोई भी न मिले तो वह मुख्य द्वार पर टीका लगाकर जहां अपनी उपस्थिति दर्ज कर देता है वहीं आस-पड़ोस के व्यक्तियों के साथ निमंत्रण की बात को बोलकर उक्त परिवार को बताने के लिए कह देता है। लेकिन इतना अवश्य है कि शादी के लिए अपने घर बुलाए जाने वाले रिश्तेदारों को न्यूद्रा अवश्य दिया जाता है। न्यूद्रा देने आए व्यक्ति का परिवार वाले खूब आतिथ्य करते है। यह इस रस्म की विशेष बात है।
न्यूंद्रा देने की व्यवस्था
वैसे तो न्यूंद्रा शादी के घर वालों को ही देना होता है, लेकिन यदि घर में यहां-वहां, दूर-दूर तक रिश्तेदारी में न्यूंद्रा देने जाने वाले सदस्य न हों तो शादी वाला परिवार अपने आस-पड़ोस के लडक़ों या बड़ों को अलग-अलग इलाके से बुलाए जाने वाले अपने रिश्तेदारों की सूचियां थमाकर अपने इस न्यंूद्रा की रस्म को उनसे निभवाता है। ऐसा करके शादी वाले घर को शादी की तैयारी के लिए काफी समय भी मिल जाता है।
महिलाएं नहीं देती न्यूंद्रा
बता दें कि न्यूंद्रा देने के लिए महिलाएं नहीं जाती हंै बल्कि यह कार्य पुरुषों के हवाले ही होता है। यह उस समय से प्रथा चली आ रही है जब रिश्तेदारी में दूर-दूर सुनसान इलाकों से होकर गुजरना पड़ता था। उस समय महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से यह कार्य पुरुषों ने अपने ही जिम्मे रखा जो आज भी निरंतर जारी है।
कुल पुरोहित तय करता तिथियां
शादी की सारी तिथियां कुल पुरोहित द्वारा जब तय कर ली जाती हैं तो उसी समय न्यूंद्रे की शुरुआत के लिए शुभ दिवस और समय भी निश्चित कर लिया जाता है। न्यूंद्रे में एक विशेष बात यह है कि सबसे पहला न्यूंद्रा मिठाई के साथ दूल्हा-दुल्हन के ननिहाल को ही दिया जाता है। उसके बाद ही अन्य रिश्तेदारों को न्यूद्रा की रस्म निभाई जाती है। यदि बहुत समय पहले की बात करें तो ननिहाल वालों को न्यूंद्रा देने पहले कुल पुरोहित स्ंवय जाया करते थे। यह रस्म ऐसी है जो हमारे समाज को आपस में एक डोरी में बांध कर रखती है।
शार्टकट के बावजूद न्यूंद्रा का वजूद
आज समय जरूर बदला है। आज शादी, जन्मदिन, अन्य किसी उत्सव या त्योहार के लिए निमंत्रण पत्र व्हाट्स एप पर या फिर मेल आदि पर ही भेज दिए जाते हैं। या फिर फोन करके ही बुलावा दे दिया जाता है। इस शॉर्टकट तरीके के आज की युवा पीढ़ी अपना रही है। बावजूद इसके सुखद बात यह है कि वर्तमान के इस व्यस्ततम समय में न्यूंद्रा की यह रस्म पूर्व की तरह आज भी हिमाचल में चलाएमान है।
न्यूंद्रा के बहाने जुड़ाव
न्यूंद्रा किस तरह से लोगों को जोड़ता है इसका व्यवहारिक पक्ष यह है कि जब हम घर-घर बुलावा देने पहुंचते हैं तो हम अपने रिश्तेदार व उसके परिवार के साथ मिल पाते हैं। हमें न्यूंद्रा रस्म के जरिए अपनी रिश्तेदारी की पहचान होती है। दूर रह रहे अपने रिश्तेदारी के इलाके, वहां के माहौल की खबर मिलती है। इस हल्के से मिलने, दो घड़ी उनके सम्मुख आमने-सामने बैठकर बातचीत करने से उनका हालचाल, दुख-सुख भी जान लेते हैं। नई पीढी जब न्यूंद्रा देने जाती है तो उन्हें अपने रिश्तेदारों की जान-पहचान भी हो जाती है और वे उस इलाके से भी वाकिफ हो जाते हैं जहां उन्हे भविष्य में यह जिम्मेदारी निभानी है।
पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा
अपनी रिश्तेदारी से रूबरू होने, अपनों की पहचान कर पाने के लिए कुछ इस तरह से यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती जाती है। अपने समाज को बचाए रखने में ऐसी रस्में बहुत ज्यादा कारगार हैं। यदि गाहे-बगाहे अपनी रिश्तेदारी में किसी से अनबन हो गई हो तो यह न्यूंद्रा रस्म हमारी सारी नोक-झोंक को भूलाकर फिर से हमें अपनों के साथ मिला देती है।
अपनों के करीब लाती न्यूंदा्र
इस इलेक्ट्रॉनिक युग में बेशक, हमारी जीवन की रफ्तार बहुत तेज हो चुकी है। इंटरनेट ने पूरी दुनिया को बिल्कुल छोटा-सा कर सबको करीब ला दिया है लेकिन दूसरी तरफ देखें तो हमें अपने करीबियों से दूर भी उतना ही कर दिया है। ऐसी स्थिति में न्यूंद्रा जैसी रस्में हमें अपनों के नजदीक लाने में बहुत सहायक सिद्ध होती हंै।
अपनों के लिए निकालो वक्त
शर्त बस इतनी भर है कि हमें थोड़ा समय अपनों के लिए निकालना होता है। कई बार हम अपने किसी उत्सव आदि का निमंत्रण व्हाट्सएप, मेल या मोबाइल के जरिए देकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री तो कर लेते हैं लेकिन यह प्रक्रिया हमें अपनों तक सही मायने में पहुंचने तक नहीं देती। उस समय हमें न्यूंद्रा जैसी रस्म बहुत तसल्ली देती है। यह बुजुर्गो का ऐसा प्यारा-सा एहसास ही नहीं बल्कि ऐसा खरा अनुभव है जो हमें बिछुड़ों से मिलाने में भी बहुत मदद करता है।
– पवन चैहान
गांव व डॉ. महादेव, तहसील- सुन्दरनगर, जिला- मण्डी
हिमाचल प्रदेश- 175018
मोबाइल- 098054 02242, 094185 82242