9 दिसंबर जन्मदिन पर विशेष : हिंदी साहित्य में आलोचक के रूप में बनाई पहचान, 1991 को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य पर सोलन के डॉ हेमराज कौशिक पा चुके राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार, 17 पुस्तकें हिंदी साहित्य को देने वाले 73 वर्ष की आयु में भी साहित्य लेखन व शोध में सक्रिय

Spread the love

9 दिसंबर जन्मदिन पर विशेष : हिंदी साहित्य में आलोचक के रूप में बनाई पहचान, 1991 को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य पर सोलन के डॉ हेमराज कौशिक पा चुके राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार, 17 पुस्तकें हिंदी साहित्य को देने वाले 73 वर्ष की आयु में भी साहित्य लेखन व शोध में सक्रिय
फोकस हिमाचल ब्यूरो की सोलन से रिपोर्ट
वर्ष 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार से अलंकृत होने वाले जिला सोलन के बातल के रहने वाले साहित्याकार डॉ. हेमराज कौशिक हिमाचल के साहित्य गंभीर आलोचक के रूप में जाने जाते हैं।
हिंदी साहित्य पर इनकी आज तक 17 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। डॉ. हेमराज कौशिक का जन्म नौ दिसंबर, 1949 को बातल में हुआ। इनके पिता जयानंद कौशिक अध्यापक थे। बाद में उन्होंने कर्मकांड व ज्योतिष को अपनी जीविका का आधार बनाया। डॉ. हेमराज की शरुआती पढ़ाई स्थानीय विद्यालय बातल में ही हुई। उन्होंने 1966 में अर्की विद्यालय से दसवीं की परीक्षा पास की। दसवीं के बाद घर में आर्थिक अभाव के कारण पढ़ाई बाधित हो गई। 1967 में लोक निर्माण विभाग शिमला में चार माह तक दैनिक भोगी लिपिक के रूप में काम किया लेकिन मन में उच्च शिक्षा की इच्छा जागृत रही और वे नौकरी छोड़ घर लौट आए। इसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय से प्रभाकर व इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक प्राइवेट मिडल स्कूल में मुख्याध्यापक के पद से अध्यापन की शुरुआत की।कांशी राम 60 सालों से कर रहे ड्राई क्लीन का काम, 90 वर्ष की आयु में भी कर रहे खुद आजीविका का इंतजाम
1973 नाहन से अध्यापन की शुरुआत
1973 में नाहन के एक सरकारी मिडल स्कूल में अप्रशिक्षित भाषा अध्यापक के रूप में अध्यापन आरंभ किया। इसके साथ ही पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि अर्जित कर भाषा अध्यापक का प्रशिक्षण और बीएड का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 1984 में हिंदी के प्रख्यात कथाकार और आलोचक डॉ. विजय मोहन सिंह के निर्देशन में पीएचडी की। 37 साल तक बतौर हिंदी प्रध्यापक काम कर 2009 में डॉ हमेराज कौशिक प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुए।हिमाचल प्रदेश का सबसे प्राचीन गांव मीरपुर कोटला, आरंभिक काल का माना जाता है यहां का किला, कई प्राचीन मूर्तियां इसकी गवाह, 1988 में हुई थी इस गांव की खोज
हिंदी साहित्य में आलोचना विधा को चुना
अध्यापन के बाद डॉ हेमराज कौशिक का रूझान हिंदी साहित्य की ओर बढ़ा और वे आलोचना विद्या की ओर बढ़े। आज वे हिमाचल के हिंदी साहित्य के वरिष्ठ व उम्दा आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। शुरु में डॉ हेमराज डा. बच्चन सिंह और डा. विजय मोहन सिंह के आलोचनात्मक व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और हिंदी साहित्य की आलोचना विधा को अपनाया। इससे पहले उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दी थीं। डाॅ. कौशिक की आलोचना पर अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। 1984 में अमृत लाल नागर के उपन्यास उनका शोध प्रबंध प्रकाशित हुआ था।
साहित्य व शिक्षा क्षेत्र में बेहतरीन कार्य पर पाए कई सम्मान
आलोचक डॉ हेमराज कौशिक ने एक अध्यापक के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके चलते 1992 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से नवाजा। इसके अलावा भी साहित्य क्षेत्र में उनको कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। साहित्य में उनके योगदान पर कई संस्थाओं ने उन्हें पुरस्कृति किया। 1998 को सरस्वती सम्मान से सम्मानित किए गए। ऑथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल प्रदेश ने उन्हें साहित्य सृजन सम्मान से 2011 में सम्मानित किया। भुट्टिको वीबर्ज सोसायटी लिमिटेड कुल्लू ने 2018 में वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा। इसके अलावा नवल प्रयास, कला, भाषा, संस्कृति और समाज सेवा के लिए समर्पित संस्था (शिमला) ने वर्ष 2018 में राज्य स्तरीय उत्सव में धर्म प्रकाश साहित्य रत्न सम्मान दिया। मानव कल्याण समिति अर्की, सोलन ने भी इन्हें सम्मानित किया है।साहित्यकार डॉ विजय विशाल के विचार, ‘किसकी स्तुति कराती हैं स्कूलों में प्रार्थनाएं’
कथा समय की गतिशीलता’ 17वीं कथा आलोचना पर आधारित पुस्तक
आलोचक डॉ हेमराज कौशिक की आलोचना पुस्तक ‘कथा समय की गतिशीलता’ 17वीं प्रकाशित पुस्तक है। इसमें
तीन खंडों में 24 आलेख शामिल हैं। पहले भाग कथा परिदृश्य-1 में उन्होंने यशपाल के झूठा सच, रेणु के चार उपन्यास, कृष्णा सोबती के पांच उपन्यासों सहित पंजाबी के उपन्यासकार रामस्वरूप अणखी, महाराज कृष्ण काव सहित कई अन्य उपन्यासकारों पर विस्तार से लिखा है।
दूसरा भाग कुछ कहानीकारों पर केंद्रित है, जबकि तीसरा खंड हिमाचल में लिखे गए साठ उपन्यासकारों के लगभग दो सौ उपन्यासों पर सारगर्भित आलोचकीय टिप्पणी है। इसके अलावा कथा के आस्वाद, कथा की दुनिया, मूल्य और हिंदी उपन्यास, साहित्यसेवी राजनेता शांता कुमार इनकी प्रमुख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।लेखक मुमुक्षु कमलेश ठाकुर के विचार, ‘बहुत जरूरी है नकारात्मक लोगों से बचकर रहना’

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.