स्त्री विमर्श के प्रश्नों को लेखन से उजागर करने वाली लेखिका हैं सरोज परमार, पांच दशक की साहित्य साधना, ‘मैं नदी होना चाहती हूं’ को अकादमी पुरस्कार
फोकस हिमाचल ब्यूरो, धर्मशाला
सरोज परमार हिमाचल प्रदेश की एक प्रतिष्ठित लेखिका हैं। उनका साहित्य से अटूट नाता रहा है। सरोज परमार समकालीन दौर के ज्वलंत मुद्दों के अतिरिक्त स्त्री विमर्र्श के प्रश्नों को अपने लेखन से उजागर करती रही हैं। वर्ष 1967 से 2004 तक गोस्वामी गणेश दत्त महाविद्यालय बैजनाथ में हिंदी के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत होने के उपरांत पूर्णतया लेखन को समर्पित रही हैं। कांगड़ा जिला के पालमपुर उपमंडल के सुगघर रोड़ की निवासी सरोज परमार 78 साल की उम्र में भी लेखन के प्रति गंभीर हैं और साहित्यिक आयोजनों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाती हैं।ओमान में भारतीय संस्कृति की दिखाई झलक, द क्राउन प्लाजा मस्कट में हिमाचल विंग ने मनाया दिवाली मेला

तीन काव्य संग्रह प्रकाशित
सरोज परमार के हिन्दी में तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं जो पाठकों के दिल में घर बनाने में कामयाब रहे हैं। उनके काव्य संग्रह में ‘घर सुख और आदमी’, ‘समय से भिड़ने के लिए’ और ‘मैं नदी होना चाहती हूं’ शामिल हैं। पुस्तकों के अतिरिक्त पिछले पांच दशक से सरोज परमार की कवितांए, साक्षात्कार, समालोचना, और कहानियां विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती या रहीं हैं।हिंदी और पहाड़ी के प्रमुख कवि कांगड़ा के गोपाल शर्मा, दो काव्य संग्रह ‘अनुभूतियों का आईना’ और ‘बज्जे ढोल’ हो चुके प्रकाशित


काम के लिए मिले सम्मान
सरोज परमार को वर्ष 2015 में साहित्यक संस्था इरावती ने इरावती सृजन सम्मान दिया। उन्हें वर्ष 2017 में त्रिवेणी साहित्य अकादमी ,जालंधर (पजांब) द्वारा सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें वर्ष 2018 में दिव्य हिमाचल नारी शक्ति सम्मान मिला। उसी साल उन्हें कायाकल्प साहित्य कला फाउंडेशन नोएडा द्वारा कायाकल्प साहित्य शिरोमणि सम्मान मिला। हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला ने उनके काव्य संग्रह ‘मैं नदी होना चाहती हूं’ को भवानी दत्त कविता पुरस्कार से पुरस्कृत किया है।मिलिये पहाड़ी गीतों का स्वर-ताल संयोजन करने वाली डॉ, चंद्र रेखा डढवाल से, गजल, गीत, कविता तथा कहानी लेखन में राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुचर्चित साहित्यकार
