चम्बा जनपद में छतराड़ी क्षेत्र में दूर दराज के परगना पीयूरा के गांव गीयूंरा के एक लब्ध प्रतिष्ठित परिवार में माता बंतो देवी और पिता सफरी राम शर्मा के घर पर जन्मे प्रभात शर्मा अपनी मेहनत एवं असाधारण प्रतिभा के बल पर न केवल प्रशासनिक सेवा के सर्वोच्च पदों पर ही कार्यरत रहे अपितु अपने सरकारी व्यवसाय के अन्तिम चरण में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के सचिव पद से सेवानिवृत्त भी हुए। इनके पूर्वजों का संबंध जहां दुर्गम व दूर दराज के छतराड़ी क्षेत्र से था, वहां इनके पिता ने कांगड़ा जिला के जोल़-छतड़ी में भी अपना स्थाई आवास बनाया, इसलिए प्रभात शर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा छतड़ी – सिहुंआं, तदुपरांत मैट्रिक तक शाहपुर विद्यालय में और फिर संस्कृत विषय में आनर के साथ प्रवीण स्नातक की उपाधि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अन्तर्गत राजकीय महाविद्यालय : धर्मशाला से इन्होंने प्राप्त की। स्नातक बनने के बाद कुछ समय तक एक निजी विद्यालय में संस्कृत – अध्यापक के रूप में भी इन्होंने कार्य किया। इसके उपरांत सितंबर 1976 में वन-रक्षक के रूप में तथा जून 1977 में राजस्व विभाग में बतौर कानूनगो नियुक्ति होने पर इनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदले और यह पूर्ण रूप से राजस्व एवं भू-व्यवस्था से जुड़ते चले गए। कानूनगो के रूप में नियुक्ति के बाद भू-व्यवस्था एवं मुहाल का प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत खुंडियां तथा धौलाधार प्रोजेक्ट : पालमपुर में भी अपनी सेवाएं प्रदान कीं।देव परंपरा : मनाली के बाहरी इलाके में 10 गांवों में शोर की इजाजत नहीं, यहां 42 दिनों के लिए साइलेंट मोड पर रहता है मोबाइल फोन
तत्पश्चात नायब तहसीलदार के रूप में उपायुक्त कार्यालय : कांगड़ा के साथ-साथ एन एच पी सी : बनीखेत, मंडलायुक्त कार्यालय : धर्मशाला तथा चम्बा की पांगी-घाटी में सेवाएं प्रदान करने के पश्चात जब तहसीलदार के रूप में पदोन्नति हुई तो सर्वप्रथम मन्दिर अधिकारी, चिन्तपूर्णी और फिर भटियात, सुन्दर नगर, पांगी-घाटी, हमीरपुर और मंडी आदि में कार्य करने के उपरांत हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा में आने पर ए सी टू डी सी बिलासपुर, मंडी तथा उप मंडल अधिकारी (ना.) : पांगी – किलाड़ में कार्य करते हुए सन् 2008 में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड, धर्मशाला में सचिव पद पर जून 2012 तक अपनी सेवाएं प्रदान कीं। अपने व्यवसाय के मध्य वर्ष 1997 में इन्होंने पांगी-घाटी में बतौर तहसीलदार अपनी सेवाएं देते हुए न केवल उप मंडल अधिकारी (ना.) के रूप में ही अपनी सेवाएं दीं अपितु आवासीय आयुक्त के रूप में भी इकहरी प्रशासनिक प्रणाली के अन्तर्गत समस्त सरकारी विभागों के उत्तरदायित्व को सफलतापूर्वक निभाने का सराहनीय प्रयास भी किया। सचिव, स्कूल शिक्षा बोर्ड रहते हुए भी इन्होंने जहां शिक्षकों, शिक्षार्थियों एवं बोर्ड – कर्मचारियों के हित में कई प्रशासकीय कदम उठाए, वहां स्टेट ओपन स्कूल की अवधारणा को सफल बनाते हुए बोर्ड के समस्त कार्यों का कम्प्यूटरीकरण करने के लिए लगभग पांच करोड़ के बजट का प्रावधान भी किया। बोर्ड कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित करने के लिए चार ट्रस्टों की भी स्थापना की, जिनमें पैन्शन कोश ट्रस्ट अति महत्वपूर्ण निर्णय था, जिसमें दस लाख की राशि संचित करके उसका शुभारंभ किया इन्होंने ही किया । इसी के साथ-साथ एक बहुत बड़े परीक्षा एवं नकली प्रमाण पत्र फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करते हुए, उसके विरुद्ध एफ आई आर भी दर्ज करवाने की हिम्मत इन्होंने ही की थी।रहस्य : कांगड़ा किले में थे खजाने से भरे 21 कुएं, गजनवी ने आठ कुओं को लूटा, ब्रिटिश फौजों ने पांच पर किया हाथ साफ़ , खजाने से भरे आठ कुएं अभी भी मौजूद
अपने जीवन के समस्त प्रशासकीय अनुभवों को यह महत्वपूर्ण तो मानते ही हैं परंतु पांगी-घाटी के विभिन्न चरणों के लगभग दस वर्षों के कार्यकाल को यह बहुत अधिक अविस्मरणीय मानते हैं। एक कुशल प्रशासक के रूप में इनका हर संभव प्रयास रहा कि यह कार्यालय में बैठकर काम करने के साथ-साथ समय-समय पर दूर दराज बसे लोगों, विशेषकर बुजुर्गों के बीच स्वयं जाकर उनके दुख-दर्द को साझा करके लोक-कल्याण की भावना रखते हुए सरकारी सहायता तक पहुंचाने का प्रयास भी करते रहे हैं। पांगी-घाटी में लोगों की समस्याओं को समझने के लिए इन्होंने पंगवाली एवं भोटी भाषा को भी सीखा और पंगवालों एवं भोटों की भावनाओं को समझते हुए, उनके घर-द्वार पर जाकर उनकी सहायता की। यही कारण है कि पांगी के लोग आज भी इन्हें अपना ही आदमी व हित-चिन्तक मानते हैं और यह भी सेवा निवृत्ति के बाद लगभग हर वर्ष पांगी-घाटी की यात्रा पर अवश्य ही जाते हैं। पांगी-घाटी के विकासात्मक कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करवाने, सड़कों के निर्माण तथा बस सेवा को साचपास के रास्ते पहुंचाने, मन्दिरों के निर्माण के साथ-साथ अति दूर स्थित भटौरियों में गोम्पा बनवाने आदि-आदि के कार्य, जो भी इनके कार्यकाल में हुए हैं, समस्त पांगी वासी आज भी इनके योगदान की सराहना करते हैं। घाटी में शिक्षा की लौ को जगाने के लिए भी इनकी भूमिका विद्यालयी स्तर से लेकर महाविद्यालय और आई टी आई की स्थापना तक में महत्वपूर्ण रही है।साल में एक बार खुलता है यह मंदिर, मंडी जिले में है हत्या देवी का मंदिर
भू-व्यवस्था संबंधी समस्त कार्यों के साथ-साथ अन्य प्रशासनिक कार्यों के लिए जहां इन्हें भरपूर सराहना एवं आदर-सहयोग मिलता रहा है, वहीं इनके खाते में कई प्रकार के जोखिम भरे, साहसिक एवं रोमांचक कार्य भी दर्ज हैं। पांगी-घाटी में ही नौकरी के दौरान दो अति विशिष्ट महान हस्तियों को काल के मुंह में जाने से बचाने का सफल प्रयास भी इन्होंने किया। एक बार फिंडरू-फिंडपार के लिए बने चन्द्र भागा के पुल के उद्घाटन के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह जी के साथ बागवानी मंत्री सत्यप्रकाश ठाकुर जी थे और प्रभात शर्मा जी उस समय उप मंडल अधिकारी (ना.) के रूप में प्रशासनिक उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए साथ थे। उद्घाटन के मध्य ही चन्द्र भागा की ढांक के नजदीक ही सत्यप्रकाश ठाकुर जी का पैर जरा-सा क्या फिसला कि वह लड़खड़ा कर गिरने को ही हुए कि प्रभात शर्मा जी ने एकदम कसकर पकड़ करके उन्हें नीचे गिरने से बचा लिया। यदि पलक झपकने की भी देर हो जाती तो कोई भी अनहोनी घटित हो सकती थी। आज भी सत्यप्रकाश ठाकुर जी उस दृश्य को स्मरण कर सिहर उठते हैं और प्रभात शर्मा जी का धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। इसी प्रकार एक बार सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता विभाग की निदेशक मैडम हिरेन्द्र हीरा ने पांगी-घाटी के दौरे के दौरान शौर नामक स्थान पर चन्द्र भागा के ऊपर ही बने उस झूला पुल से पार जाने की इच्छा व्यक्त की, जो लोहे की तारों और किल्लर-झाड़ी की लकड़ियों से बना हुआ था। इस पुल पर तारों को खोलते हुए किल्लर की लकड़ियों पर पग-पग करके आगे बढ़ना पड़ता है।कभी यहां बसता था बिलासपुर का एक शहर : गर्मियों में जब जलस्तर गिर जाता है तो यहां के मंदिर व खंडहर एक शहर की यादें जिंदा कर देते हैं
उस झूला-नुमा पुल पर आगे – आगे प्रभात जी और पीछे – पीछे मैडम चलने लगे पर बीच में पहुंच कर न जाने कैसे मैडम कुछ असमंजस में पड़ गईं और तार उनके खोलने से खुली नहीं और वह डगमगाने को हो गईं। प्रभात शर्मा जी ने एकदम से अपने को पीछे की ओर मोड़ा और मैडम को वहीं से उल्टे कदम पीछे – पीछे आने को कहा। प्रभात जी तार खोलते गए और मैडम उनका सहारा लेते हुए वापस पुनः उसी ओर लौट आईं। यदि वह भी उस अवस्था में एक-दो कदम आगे चलतीं, पैर लकड़ी पर यदि डगमगा जाता तो उनके साथ भी कोई अनहोनी हो सकती थी। एक और भयानक मंजर भी इन्होंने पांगी-घाटी की हिलु-टुआन भटौरी के टुआन गांव में 1995 में बादल फटने की घटना में देखा था। इस घटना में भी बहुत अधिक जानमाल का नुकसान भी हुआ था और पूरे क्षेत्र का हुलिया ही बदल गया था। इसी तबाही में पुलिस बटालियन का एक जवान, जो कि कांगड़ा जिला के तियारा गांव का फौजा सिंह था, मलबे में दब गया था। तीन दिन के पश्चात उसके शव को तलाश करवा कर प्रभात शर्मा ने किश्तवाड़ – जम्मू के रास्ते विपरीत परिस्थितियों में भारी परेशानी व जोखिम के मध्य तियारा पहुंचा कर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसकी अन्त्येष्ठि करवाई थी।मणिमहेश यात्रा का फल पाना है तो पहले कीजिए भरमाणी माता के दर्शन, चंबा से 62 किमी दूर भरमौर में स्थित मंदिर से जुड़ी हैं कई मान्यताएं
हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के सचिव पद से सेवानिवृत्ति के उपरांत इन्होंने अपने को पूर्ण रूप से यायावरी, साहित्य सेवा एवं प्रशासनिक सेवा – नियमों आदि का प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए समर्पित कर दिया है। यायावरी में जहां यह अपने अभिन्न साहित्यिक मित्र रमेशचंद्र मस्ताना के साथ दूर दराज के दुर्गम क्षेत्रों की यात्रा करके वहां की लोक संस्कृति एवं परिस्थितियों को समझने का प्रयास करते हैं, वहां क्षेत्र के अति बुजुर्ग लोगों से भेंट – वार्ता करके उनके अनुभवों को भी जानते हैं। विभिन्न विद्यालयों अथवा महाविद्यालयों में जाकर यह साहित्यिक जोड़ी छात्र – छात्राओं व अध्यापकों के साथ संवाद भी स्थापित करती है। भू-व्यवस्था संबंधी विभिन्न समस्याओं का समाधान तो यह सुझाते ही हैं, एक कुशल स्रोत व्यक्ति के रूप में विभिन्न विभागों, विशेष रूप से राजस्व, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि विभागों से जुड़े अधिकारियों को सेवा नियमों के साथ-साथ सूचना का अधिकार आदि पर विस्तार के साथ जानकारी व सुझाव प्रेषित करते हैं। साहित्य के प्रति लगाव को आगे बढ़ाते हुए जहां इनकी एक पुस्तक मनमोहक देवधरा : पांगी प्रकाशित हो चुकी है, वहां कई शोधात्मक एवं लोक-सांस्कृतिक विषयक आलेख भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी, पहाड़ी एवं संस्कृत कविता पर भी इनकी मजबूत पकड़ है और जहां यह कई मंचों पर इनकी सुन्दर प्रस्तुतियां भी दे चुके हैं।10वीं सदी के समृद्ध ब्रजेश्वरी देवी के मंदिर को पांचवीं सदी में कई बार लूटा गया, 51 शक्तिपीठों में है ब्रजेश्वरी देवी, त्वचा के रोग व जोड़ों का दर्द दूर करता ब्रजेश्वरी देवी मां के मक्खन का प्रसाद,
साहित्यिक और सांस्कृतिक यात्राओं के क्रम में प्रभात शर्मा एवं रमेशचंद्र मस्ताना की साहित्यिक जोड़ी अब तक चम्बा जिला की चुराह, भटियात, होल़ी – नया – ग्रां – लाके वाली माता – क्वारसी और भरमौर आदि के साथ-साथ पूरी पांगी-घाटी की दूर-दुर्गम भटौरियों तक, शिमला जिला के रोहड़ू- डोडरा-क्वार तक, सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र, लाहौल के कैलंग व म्याड़-घाटी के तिंगरिट तक, कांगड़ा के छोटा भंगाल, मंडी की चुहार-घाटी व कांडा-जोत, कुल्लू की मनाली, नग्गर व रोहतांग तक के अतिरिक्त जम्मू संभाग के डोडा – किश्तवाड़ – गुलाबगढ़ व पाड्डर घाटी, भद्रवाह और पधरी-जोत तथा कठुआ के प्रमंडल – उत्तर वाहिनी क्षेत्र और उत्तराखंड के सेवा ग्राम – रूपिन-सूपिन वैली, पुरौला-घाटी-नटवाड़ तक का भ्रमण करके, वहां की लोक संस्कृति को नजदीक से देखने का प्रयास कर चुकी है।कुगती के केलंग बजीर मंदिर में पूरी होती है चेले से गूर बनाने की प्रक्रिया, कुगती गांव में देव मान्यता के चलते आज तक न तो मुर्गा पाला जाता है और न ही खाया जाता है
शिक्षा, साहित्य और लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए पूर्ण रूप से समर्पित प्रभात शर्मा जी वर्तमान में स्मार्ट सिटी : धर्मशाला के वार्ड नंबर 9, सकोह में अपना आवास बनाकर रह रहे हैं। इनके सुखी, समृद्ध और आदर्श परिवार में धर्म पत्नी, दो बेटों – बहुओं और एक पोते के साथ-साथ एक बेटी है, जोकि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय : दिल्ली में विज्ञान के क्षेत्र में पी. एचडी करके वहीं कार्यरत है। इनके पूरे परिवार पर इनकी कुल देवी माता परौल़ी वाली की असीम कृपा है और इन्होंने उसकी स्थापना अपने आवास पर सुन्दर मन्दिर बनवा कर की हुई है। हर समय अपने चेहरे पर मुस्कान एवं लोक कल्याण की भावना रखते हुए सभी जरूरत मंदों की सहायता हर संभव तरीके से करने को यह हर समय तत्पर रहते हैं।द्वापर युग से जुड़ा है उदयपुर के मृकुला देवी मंदिर का इतिहास, प्राचीन काष्ठ कला का अद्भुत उदाहरण, यहां है महिषासुर के रक्त से भरा खप्पर, भूल से कोई देख ले तो हो जाएगा अंधा
लेखक : रमेशचंद्र ‘मस्ताना’
मस्त-कुटीर : नेरटी, ( रैत ),
कांगड़ा, हि. प्र. 176208.
मोबाइल : 94184-58914.
बहुत ही सुन्दर और प्रभावी लेख। आदरणीय मस्ताना जी को इसके लिए बहुत बधाई। आदरणीय प्रभात जी का जीवन एक साहसी प्रतिभाशाली और विद्वान साहित्यकार के रुप में प्रतिष्ठित है। आज उनका जन्मदिन भी है इसके लिए उन्हें बहुत बधाई शुभ कामनाएं।
सुरेश भारद्वाज निराश