चंबा से अमीन चिश्ती की रिपोर्ट
‘चंबा रूमाल’ से दुनियाभर में चंबा की प्रख्याति है। वो इसलिए कि 16वीं सदी से चंबा रूमाली की कढ़ाई और कशीदाकारी को आज भी यहां की महिलाओं ने कायम रखा है और चंबा की इस अनमोल सांस्कृतिक धरोहर को बचाकर रखा है। ऐसी ही कशीदाकारों में 84 वर्षीय सिराज बेगम का भी नाम है। इस उम्र में भी चम्बा रुमाल की कशीदाकारी में उनका हुनर कमाल का है और आज भी ऐसी लगन कि 6 से 14 घंटे तक चम्बा की कशीदाकारी में साधनारत रहती हैं। यह विरासत कायम रहे इसके लिए वह कई युवतियों को इसमें पारंगत बना रही हैं। कई महिलाओं ने उनसे चंबा रूमाल की कसीदाकारी सीखकर स्वरोजगार शुरू किया है और आत्मनिर्भर बनी हैं। फिरदोस हैंडीक्राफ्ट स्वयं सहायता समूह चला रही सिराज बेगम के पास इस समय 30 युवतियां चंबा रूमाल की कसीदाकारी सीख रही हैं। वह गरीब युवतियों व महिलाओं को नि:शुल्क प्रशिक्षण देती है साथ ही उपयोग होने वाली सामग्री कपड़ा, धागा इत्यादि ही मुहैया करवाती हैं।कहीं भूरी सिंह संग्रहालय की गैलरियों तक सिमट कर न रह जाए चंबा की पुरातन धातुकला, उनके पुरखों ने बनाईं धातु की कलाकृतियां बेशुमार अब ‘सैंडकास्टिंग’ को सहेज रहे सिर्फ हैं दो परिवार
दादी मां ने सिखाई कशीदाकारी, हुनर के दम पर मिली नौकरी
सिराज बेगम को बचपन से ही कढ़ाई का शौक़ था, उन्होंने चम्बा कढ़ाई का प्रशिक्षण अपनी दादी मां और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित महेशी देवी से लिया। अपने हुनर के बदौलत ही सिराज बेगम को उद्योग विभाग में नौकरी मिली थी, जहां उन्होंने युवतियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। यह सिलसिला नौकरी के बाद भी जारी है।पांच सदी पहले बेबे नानकी का बनाया पहला चंबा रुमाल होशियारपुर के एक गुरूद्वारे में सहेज कर रखा, लंदन के विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूजियम में संरक्षित तीन सदी पुराना चंबा रुमाल
चंबा रुमाल में पिरोया इतिहास और सांस्कृतिक उत्सव
सिराज बेगम ने अपनी कशीदाकारी का एक अलग आयाम स्थापित किया है। उन्होंने कई ऐतिहासिक घटनाओं को अपनी कशीदाकारी से रुमाल में चित्रित किया जिसमें रास मंडल ,विवाह अनुष्ठान, नायक नायिकाओं, कृष्ण अठखेलियों, विष्णु दसावतार, शिकारगाह ,अष्ट नायिकाएं और मिंजर जलूस शामिल है। इसके अलावा पहाड़ी राजाओं और सम्राट शेर शाह सूरी का चित्र भी शुमार है। वह चम्बा रुमाल में चित्रों को अपनी सिद्धहस्त उंगलियों से बारीक सुई में महीन रेशमी धागों को पिरोकर चित्रों को जीवंत कर देती हैं।नेरटी का देहरा जहां अढ़ाई घड़ी तक खोपड़ी के बिना लड़ा राजा राजसिंह , शाहपुर के नेरटी गांव में चंबा के राजा राजसिंह का शहीदी स्थल, पूजनीय है ‘स्मृति शिला’
देश-विदेश में हुनर के कायल
सिराज बेगम की कलाकृतियों की प्रदर्शनियां अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेला , कुल्लू दशहरा, मंडी शिवरात्रि के अलावा प्रदेश भर के मशहूर मेलों में लग चुकी हैं। चम्बा रूमाल की कशीदाकारी का प्रतिनिधित्व करने पर उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। भूरी सिंह संग्रहालय चम्बा, धर्मशाला संग्रहालय व राज्य संग्रहालय शिमला में आयोजित प्रदर्शनियों में भी देश-विदेश के हजारों दर्शक आसिराज बेगम की कलाकृतियों प्रशंसा कर चुके हैं। सिराज बेगम की इच्छा है कि वह “रानी सुनयना की बलिदान गाथा” को तीन सौ पैंसठ चित्रों में उकेरकर प्रदर्शित करे, जिसके लिए चित्रांकन का कार्य चल रहा है। सिराज बेगम को चम्बा कशीदाकारी के विशिष्ट योगदान अथवा प्राचीन कला के संरक्षण व समर्थन के लिए विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा उन्हें अनेकों अवसरों पर सम्मानित किया गया है जिसकी एक लम्बी फेहरिस्त है।‘नई राहें नई मंजिलें’ शाहपुर के गांव नेरटी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का किया जाएगा संरक्षण