चंबा से मनीष वैद की रिपोर्ट
16वीं सदी की दो रूखे टांके की कशीदाकारी के लिए मशहूर चंबा रूमाल के लिए दो बार राष्ट्रपति अवॉर्ड हासिल कर चुकी ललिता वकील हिमाचल प्रदेश की इकलौती हस्तशिल्पी हैं, जिन्हें ’शिल्प गुरु’ सम्मान प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। ललिता वकील ने न केवल खुद चंबा रूमाल की बिरले शिल्प के संरक्षण में अहम भूमिका अदा की है, बल्कि नई पीढ़ी को भी इस लोक कला के संरक्षण के लिए तैयार किया है। इस बहाने उन्होंने चंबा की युवतियों के लिए रोजगार के दरवाजे भी खोले हैं। रावी-ब्यास के उतार-चढ़ाव में बहती ‘अलकनंदा’, चंबा की बेटी ने मंडी की बहू बनकर साबित किया अपना वजूद, वकालत और सियासत में पकड़, वर्तमान में मंडी के वार्ड वन की है काउंसलर
शिल्प संरक्षण के लिए सम्मान
वर्ष 1978 जिलास्तरीय अवॉर्ड
वर्ष 1993 राष्ट्रपति अवॉर्ड
वर्ष 1995 बेस्ट क्राफ्ट वूमैन अवॉर्ड
वर्ष 1998 व 2002 कलाश्री अवॉर्ड
वर्ष 2006 कला रत्न अवॉर्ड
वर्ष 2010 शिल्प गुरु अवॉर्ड
बचपन से कढ़ाई-बुनाई का हुनर
रियासतकालीन समय में चंबा शहर के सपड़ी मोहल्ला में वर्ष 1953 में चौणा परिवार में जन्मी ललिता का बचपन से ही कढ़ाई बुनाई व चंबा की प्राचीन कलाओं प्रति लगाव था। चंबा रूमाल की कला से जुडऩे की शुरुआत सोलह वर्ष की आयु में हुई। शुरू में घर पर कपड़े की कटिंग अथवा क्रोशिये से बुनाई से उनका सफर आरंभ हुआ, लेकिन इसी बीच उन्हें चंबा रूमाल की कला सीखने में खुद को ढाल लिया। साउथ अफ्रीका में शान बढ़ाएगा महात्मा गांधी का चित्रयुक्त चंबा रुमाल, सरस्वती स्वयं सहायता समूह ने किया चंबा रुमाल तैयार, नॉट ऑन मैप संस्था भेजेगी साउथ अफ्रीका
ससुराल से मिला प्रोत्साहन
ललिता की शादी चौतड़ा मोहल्ला निवासी डॉ. एमएस वकील से हुई। ससुराल में ललित कला के प्रति रूझान के चलते उन्हें चंबा रूमाल की कला सीखने के लिए प्रोत्साहन मिला। चंबा उद्योग केंद्र में चंबा कढ़ाई शिक्षिका महेश्वरी देवी से उन्होंने इस कला प्रशिक्षण लिया। 1978 में रंगमहल चंबा में स्थापित ओद्यौगिक प्रशिक्षिण संस्थान में दो वर्ष तक शिक्षिका महेश्वरी देवी से चंबा कढ़ाई की कला सीखी।भारत-फ्रांस के मजबूत संबंधों का प्रतीक है चंबा की राजकुमारी और फ्रांसीसी सैनिक जनरल एलार्ड का प्रेम : महराजा रणजीत सिंह के फ्रांसीसी सैनिक जनरल एलार्ड ने किया था चंबा की राजकुमारी बुन्नू पान देई से प्रेम विवाह, फ्रांस के सेंट ट्रोपेज में बनी हैं तीनों की प्रतिमाएं
विदेशों तक पहुंची हुनर की चमक
ललिता वकील अब तक करीब पचास युवतियों व महिलाओं को चंबा रूमाल की कला में दक्ष कर चुकी हैं। यह उनके ही प्रयासों का परिणाम है कि एक नई पीढ़ी चंबा जैसी सदियों पुरानी धरोहर के संरक्षण में जुटी हुई है। ललिता वकील को जर्मनी, कनाडा, रूमानिया व यूनान में चंबा रूमाल की प्रदर्शनियां लगाने के अवसर मिले हैं। उन्हें इस बिरले हस्तशिल्प के संरक्षण के लिए कई पुरस्कार व सम्मान मिले हैं।
घर से संचालित प्रशिक्षण केंद्र
ललिता वकील ने प्रशिक्षण के बाद चंबा रूमाल, प्राचीन धार्मिक एवं रिसायतकालीन आकृतियों की कढ़ाई उकरने का कार्य करती रहीं। उन्हें चंबा में आयोजित प्रदर्शनी में अपनी कृतियों को प्रदर्शित करने का अवसर मिला। प्र्रदर्शनी में पहुंचे दिल्ली के तत्कालीन गवर्नर ने उनकी चंबा रूमाल कला की जमकर तारीफ की। जवाहर लाल नहेरू शिल्प योजना के तहत उनके गृह निवास स्थान पर चंबा रूमाल प्रशिक्षण केंद्र खोलने का अनुबंध प्राप्त हुआ। ललिता वकील इस प्रशिक्षण केंद्र का संचालन अब भी बिना प्रशिक्षण शुल्क कर रही हैं।सन् 1998, दो और तीन अगस्त की वो भयानक नरसंहार की रात जो हिमाचल जिला चंबा के कालाबन-सतरुंडी में गुजरी थी, जानिये कैसे आतंकवादियों ने कत्ल किए थे कई मजदूर, कर्मचारी और राहगीर
मेहनत मांगती है लोक कला
ललिता वकील का कहना है कि कला एक साधना है और कलाकार अथवा शिल्पी को साधक की तरह अपनी कला में पारंगत होने के लिए नियमित अभ्यास करना होता है। कला में शीर्ष तक पहुंचने के लिए प्रशिक्षण और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है। उनका कहना है कि लोक शिल्प और लोक कलाओं के संरक्षण के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। इन धरोहरों को नई पीढिय़ों के लिए संरक्षित करना समय की मांग है।हिमाचल प्रदेश का सेसिल चैपल : अपने भित्ति चित्रों के लिए दुनिया भर में मशहूर 268 साल पुरानी चंबा की ऐतिहासिक धरोहर देवीकोठी मंदिर शायद ही बच पाए