मिलिये पहाड़ी गीतों का स्वर-ताल संयोजन करने वाली डॉ, चंद्र रेखा डढवाल से, गजल, गीत, कविता तथा कहानी लेखन में राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुचर्चित साहित्यकार
धर्मशाला से विनोद भावुक की रिपोर्ट
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धर्मशाला से हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर पद से सेवानिवृत डॉ, चंद्र रेखा डढवाल गजल, गीत, कविता तथा कहानी लेखन में राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुचर्चित नाम है। सुरीला कंठ, स्पष्टवादिता और साफ सुथरा, सहज लेखन उनकी विशेषता है। उनकी प्रत्येक रचना की पृष्ठभूमि मे घटनाक्रम का गहन चिंतन, अनुभव और संवेदनाओं का हदयस्पर्शी वर्णन मिलता है, जो पाठकों श्रोताओं तथा दर्शकों को अनायास ही आकर्षित करके उनके मन मस्तिष्क पर छा जाता है और हृदयतल तक पहुंचकर एक मीठी सी चुभन का एहसास कराता है। 71 साल की उम्र में भी डॉ, चंद्र रेखा अध्ययन और लेखन में पूरी तरह से सक्रिय हैं और विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती हैं। वे हिन्दी और पहाड़ी दोनों में सृजन करती या रही हैं और उन्होंने हिमाचली (पहाड़ी) गीतों का स्वर-ताल संयोजन भी किया है। वे विगत कई वर्षों से लोक भाषा साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में कार्य कर रहीं हैं।साक्षात्कार : तमिलनाडु में रह कर मैथिली मातृभाषी हिंदी गीतों के सृजक ईश्वर करुण के साथ डॉ. विजय पुरी की खास मुलाकात, ‘सरल शब्दों में भावों को गूंथता गीतकार’

लोक भाषा साहित्य और संस्कृति का संवर्धन
डॉ.चंद्र रेखा ढडवाल की की प्रकाशित पुस्तकों में ‘लोक भाव स्वरांजलि’ (सहलेखन), ‘जरूरत भर सुविधा’ (कविता संग्रह) और अक्खर अक्खर जुगनू(पहाड़ी कविता संग्रह) शामिल हैं। उनकी रचनाएं हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, कथाक्रम, कथादेश, अभिनव इमरोज, विपाशा, इरावती आदि प्रान्तीय और राष्ट्रीय पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती हैं। किताब घर, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, केंद्रीय साहित्य अकादमी से प्रकाशित पुस्तकों में उनकी कविताएं तथा कहानियां प्रकाशित हुई हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे कविता, कहानी, निंबध प्रकाशित हुए हैं। उनकी कहानियों के अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं।लोकसंस्कृति : कौवे पर लोकोक्तियां और मुहावरे पढ़िये, कौवे के बहाने कोई सीख या सलाह आज भी करतीं हैं समाज का मार्गदर्शन

‘अक्खर अक्खर जुगनू’ को अकादमी पुरस्कार
डॉ.चद्रं रेखा डढवाल को उनकी कविता के लिए हिमाचल दिवस के शीतल सृजनधर्मी पुरस्कार 2015 से सम्मानित किया गया है। साहित्यकर्म के लिए उन्हें दैनिक दिव्य हिमाचल व प्रदेश की कई अन्य स्वैच्छिक साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है। हिमाचल कला, संस्कृति, भाषा अकादमी ने डॉ.चद्रं रेखा डढवाल को उनके पहाड़ी कविता संग्रह ‘अक्खर अक्खर जुगनू’ के लिए वर्ष 2016 के डॉ.विद्याचंद ठाकुर पहाड़ी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया हैस्मृति-शेष – सुकेत राज दरबार की मंगलमुखी गायिका कबूतरी की मखमली आवाज का जादू कई रियासतों में चलता था जादू , सौ साल तक करती रही लोकगीतों की संभाल