मिलिए शिमला की शिवांगिनी से , जिसने ऑनलाइन क्राउड फंडिंग से राशि जुटाई, अंटार्कटिका तक पहाड़ की आवाज पहुंचाई
शिमला से उमेश शर्मा की रिपोर्ट
यह प्रेरक कथा है कि शिमला की 247 साल की शिवांगिनी सिंह की। जब शिवांगिनी 24 साल की थी तो 27 फरवरी से 12 मार्च 2018 तक आयोजित क्लाइमेट फार्म अंटार्कटिका-2018 एक्सपेडिशन में भाग लेने वाली इकलौती हिमाचली बाला थी। इस अभियान के लिए शिवांगिनी को 22 हजार अमरीकी डॉलर की जरूरत थी। शिवांगिनी के लिए इतनी बड़ी राशि का प्रबंध करना आसान नहीं था, बावजूद इसके उसने अपने अभियान के लिए कुछ संगठनों से आर्थिक मदद जुटाई, वहीं ऑनलाइन क्राउड फंडिंग का भी सहारा लिया। वे कहती है कि उसके इस अभियान के लिए परिजनों और दोस्तों ने खूब मदद की और वह अपने मिशन में कामयाब हुई। इस अभियान में विश्व भर से करीब 150 लोग शामिल थे, जिसमें भारत के 8 प्रतिभागियों ने भी भाग लिया था ।
अब हिमालय पर काम
इस अभियान के अनुभव के बाद शिवांगिनी हिमालय के बदलते पारिस्थितिकी तंत्र पर काम कर रहीं हैं। वह जलवायु परिवर्तन के लिए न केवल मुखर कार्यकर्ता बनना चाहती है, बल्कि इसके लिए वैज्ञानिक समाधानों का रास्ता देखती है। शिवांगिनी का कहना है कि जल्वायु परिवर्तन के चलते हिमालय के वजूद पर खतरे के बादल मंडराने शुरू हो गए हैं। वह हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र के सुधार की दिशा में काम करना चाहती है।
एनआईटी हमीरपुर की होनहार
शिवांगिनी सिंह ने शिमला के लोरेटो कान्वेंट से पढ़ाई करने के बाद हमीरपुर स्थित नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पढ़ाई की हैं। उन्होंने मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान से चार सप्ताह का बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स भी किया है। शिवांगिनी बेंगलुरु में बतौर एप्लीकेशंज डिवेलपर काम कर रही हैं। शिवांगिनी को गर्व है कि वह वैश्विक मंच पर उसे हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला।
समस्या के समाधान की राह
शिवांगिनी का कहना है कि अंटार्कटिका अभियान का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, स्थिरता और अंटार्कटिका महाद्वीप के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को समझना था। उनका कहना है कि इस अभियान के जरिये लिए रिसाइकिलिंग के प्रचार, अक्षय ऊर्जा, स्थिरता और टिकाऊ व्यवसाय पर विकास नीति का निर्माण का रास्ता तैयार करना था। इस अभियान के दौरान जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर से आए प्रतिभातियों के विचार सुनने का अवसर मिला।