मिटने लगा सब पुराना, कंकरीट मेंं बदलता मलाणा : तेजी से अपना वास्तविक स्वरूप खो रहा ऐतिहासिक गांव, बढ़ रहा बाहरी दुनिया का दखल

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मलाणा से पौमिला ठाकुर की रिपोर्ट

कुल्लू के जिस ऐतिहासिक मलाणा गांव में पहुंचने के लिए कभी प्रीणी से चंद्रखणी होते हुए तीन दिन की कठिन ट्रेकिंग करके पहुंचना होता था, अब जिला मुख्यालय से तीन-चार घंटे का सफर कर यहां पहुंचा जा सकता है। रोड़ कनेक्टिविटी से मलाणा पहुंचना आसान हो गया है, शायद यही एक बड़ा कारण है कि मलाणा का वास्तविक स्वरूप खो रहा है। जहां-कहीं प्लास्टिक की खाली बोतलें, चिप्स के पैकेट, नए बनते पेइंग गेस्ट हाउस और बेधड़क व बेखौफ होकर मलाणा क्रीम का क्रय-विक्रय एवं प्रयोग। गांव के बाहर बहते छोटे से नाले से शुरू हुआ प्लास्टिक के कचरे का अंबार दिन-ब-दिन चिप्स-चॉकलेट्स के खाली रैपर्स से बढ़ता ही जा रहा है। मलाणा में भले ही खुले में शौच का चलन नहीं रहा, परंतु हर घर के बाहर बहता गंदा पानी यहां की सफाई व्यवस्था की पोल जरूर खोल रहा है। कुछ वर्ष पहले हुए एक भयावह अग्निकांड में स्वाह हुए पुराने लकड़ी के घरों की जगह अब नए कंकरीट के घरों ने ले ली है। जगह-जगह देवता के आदेशानुसार घरों को हाथ न लगाने की हिदायत और 3500 रुपए जुर्माने की सजा को बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया है। जलकर नष्ट हुए पुराने मंदिर के नवनिर्माण में जुटे बाहरी राज्यों के मजदूर। मलाणा गांव से ऊपर पहाड़ की ओर नजर डालें तो आभास होता है कि कई मंजिला कंकरीट के भवन मानों पहाड़ की उस चोटी को पछाड़ कर गगन छूने को बेताब हैं।
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सुने-देखे में जमीन-आसमान का फर्क
मलाणा, एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सभी के दिलोदिमाग में एक ऐसे अल्पविकसित गांव की तस्वीर उभर आती है, जहां विकास के नाम पर न ही स्कूल है और न ही सड़क सुविधा। न ही वहां किसी को भौतिक साधनों का ज्ञान है और न ही वहां बाजारवाद हावी हुआ है। मटमैले कपड़ों में बहती नाक लिए बच्चे लकड़ी के बने पहियों को खिलौना समझकर ठेलते नजर आते हैं। लोगों की भांति मैंने भी जितना मलाणा के बारे सुना था, उससे यही राय मेरे जेहन में भी थी।  इजरायली युवक-युवतियों के समूह के साथ भुंतर से जरी की ओर पार्वती के किनारे दोपहिया वाहनों पर चले तो मन में एक अनजाना भय था कि न जाने कितना भयानक रास्ता होगा और कितने डरावने होंगे वहां के लोग। कहीं उन्होंने हम पर पत्थरों की बौछार कर दी तो क्या होगा? जैसा कि सुना था कि किसी भी भय की आशंका में मलाणा वासी गांव की ओर चढ़ते पर्यटकों पर पत्थर मारते हैं और वापस उल्टे पांव लौटने पर मजबूर करते हैं, लेकिन मलाणा पहुंचकर जो देखा, उसने न केवल मेरी धारणा बदल गई, बल्कि मेरी आंखें खोल दीं।  ‘कल्पद्रुम’ दे संपादक, पहाड़िया च गीता दा ज्ञान : चक्रधारी शास्त्री ने कित्ता श्रीमद्भागवत गीता दा डोगरी च रूपांतर, वात्स्यायन कामसूत्र दा डोगरी अनुवाद


पार्वती के किनारे देवदार के बीच सफर
जिला मुख्यालय कुल्लू से दस किलोमीटर पहले मंडी की ओर भुंतर कस्बा है जहां से जरी सड़क मार्ग द्वारा करीब बीस किलोमीटर का सफर है, जिसे हमने मोटरसाइकिल द्वारा लगभग आधा घंटे में तय किया। जरी बाजार से लगभग एक किलोमीटर मणिकर्ण की ओर चलने पर डुंखरा नामक छोटा सा स्थान आता है, जहां से हमें मलाणा के लिए पार्वती नदी के उस पार जाना था। ज्यों ही पुल पार करके चोहखी गांव पहुंचे तो हवा में आए अचानक बदलाव को महसूस किया।  घाटी के दोनो तरफ देवदार जैसे मूकवाणी में न चाहते हुए भी हमारा स्वागत कर रहे थे, वहीं पर्यटकों के वाहनों के प्रदूषण से खफा भी दिख रहे थे।‘कल्पद्रुम’ दे संपादक, पहाड़िया च गीता दा ज्ञान : चक्रधारी शास्त्री ने कित्ता श्रीमद्भागवत गीता दा डोगरी च रूपांतर, वात्स्यायन कामसूत्र दा डोगरी अनुवाद

तेजी से बदल रहा मलाणा
जहां पुरुष गांव के बीचोंबीच बने चबूतरे पर अधलेटी अवस्था में चिलम के कश लगा रहे थे, वहीं युवा अपने- अपने ग्राहकों को मलाणा क्रीम दिखाकर मोलभाव कर रहे थे। न कैमरा ऑन होने का भय, न किसी के आने-जाने की फिक्र। उनकी आर्थिकी का सबसे बड़ा स्रोत मलाणा क्रीम ही है, जिसे वे लोग बड़े फख्र से कबूल करते हैं। मलाणा में बढ़ते बाहरी लोगों के दखल से एक बात तो तय है कि आने वाले १०-१५ वर्षों में मलाणा पूरी तरह से अपने पुराने आस्तित्व को भूला देने वाला है।


बाहरी लोगों को न छूने का प्रसंग
पचास रुपए प्रति बाइक के हिसाब से पार्किंग के जब हमसे मांग हुई तो मलाणा वासियों के अनपढ़-गंवार होने का भ्रम भी टूटा। यहां से लगभग तीन सौ मीटर की उतराई और फिर करीब डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ते हुए एक मजेदार वाक्या हुआ, जो आजीवन मेरी स्मृतियों में रहेगा। हमारे एक मित्र ने सीधी-सपाट चढ़ाई के बीचोंबीच एक छोटी सी खोखेनुमा दुकान पर बैठे लड़के से शीतल पेय की बड़ी बोतल मांगी तो उसने अंदर जाकर फ्रिज से बोतल निकालकर दुकान के बाहर बने चबूतरे पर रख दी और जब मित्र ने उसे पैसे देने चाहे तो लड़के ने तुरंत लपक लिए और बाकी बचे पैसे उसी चबूतरे पर रख दिए। धन के प्रति उसकी लालसा और बाहरी व्यक्तियों को न छूने का प्रण दोनों ही उसने एक साथ निभा लिए।पानी की कहानी : परागपुर का ब्रिटिशकालीन मॉडल और मंडी में सिख समुदाय का कुओं में जल संरक्षण की व्यवस्था बताती है कैसे निपट सकते हैं जल संकट से

टच न करना हमें, न हमारे घर को
लगभग एक घंटा पैदल चलने के बाद जैसे ही गांव में दाखिल हुए तो गांव के मुहाने पर बहते नाले के साफ-निर्मल पानी में प्लास्टिक का इतना अधिक कचरा देखने को मिला कि विश्वास ही नहीं हुआ कि इतने छोटे से गांव से इतना ज्यादा कचरा निकलता होगा। नाला पार करके पहले घर के सामने से गुजरे तो घर के आगे पक्की कंकरीट की पगडंडी पर अपने दो अढ़ाई साल के बेटे को साइकिल चलाना सिखाते एक युवा की आवाज सुनाई पड़ी… ‘टच न करना हमेंÓ। जिस भी घर के आगे से निकलते, यही आदेश आता। दस-पंद्रह घरों से साथ-साथ चलने पर हमें उस दैवीय स्थान के दर्शन हुए, जिसके एक आदेश पर मलाणा वासी अपनी दिनचर्या निभाते हैं। जी हां, देव जमलू का नया बना मंदिर।अजब-गजब : यूरोप में भी है ज्वालाजी का मंदिर, शिलालेख बोलते हैं-भारतीयों ने बनाया अजरबैजान का बाकू आतिशगाह, कभी ‘बड़ी ज्वालाजी’ से ‘छोटी ज्वालाजी’ तक धार्मिक यात्रा करते थे हिंदू तीर्थयात्री

गपशप, चिलम और मलाणा क्रीम
गांव की महिलाएं ऐसी प्रतीत हो रही थीं मानों ये कोई यूरोपियन मूल की महिलाएं हैं, जो पहाड़ी वस्त्रों में लिपटी हुईं पहाड़ी होने का अभिनय कर रहीं हों। कुछ दूरी पर महिलाओं का झुंड बतियाने में मशगूल था तो उनके बच्चे वहीं आगे-पीछे महंगे आधुनिक खिलौनों से खेल रहे थे। जब मैंने तस्वीर लेनी चाही, उन्होंने खुशी-खुशी पोज दिया, मगर एक शर्त के साथ कि हमें टच न करें। पुरुष मंदिर के बाहर बने दो चबूतरों पर बैठे चिलम का मजा ले रहे थे। पास ही बैठी एक महिला को मोबाइल फोन पर बातें करना देखना मुझे विस्मृत कर रहा था। जब मैं यहां-वहां की तस्वीरें ले रही थीं तो एक विदेशी ग्राहक से मोलभाव करते एक युवा ने अचानक अपनी महंगी पेंट की जेब से मलाणा क्रीम की पैकिंग निकालकर दिखाई तो मेरे हाथों से कैमरा छूटते-छूटते बचा।

इंग्लिश बोलने लगी है नई पीढ़ी
गांव में स्कूल खुल जाने के कारण अधिकतर बच्चे हिंदी का अच्छा ज्ञान रखते हैं। एक बात बेहद दिलचस्प लगी कि विदेशी पर्यटकों की यहां बड़ी आमद होने कारण नई पीढ़ी हिंदी के शब्दों के साथ टूटी-फूटी अंग्रेजी बड़े आत्मविश्वास के साथ बोलती हैं। गांव में टीवी का एक प्रभाव भी देखने को मिला। अधिकतर बच्चों के नाम किसी न किसी टीवी सीरियल के किरदार के नाम पर रखे गए हैं। घरों के बाहर झुंडों में बैठी महिलाएं बाहर से आने-जाने वालों को नजरअंदाज करती हैं। बच्चे जरूर सहज सरल मुस्कान से स्वागत करते हैं, मगर हिदायत जरूर देते हैं कि हमें टच न करना। जिस भी महिला अथवा बच्चे से तस्वीर खींचने का आग्रह किया, वह खुशी-खुशी पोज देता रहा।

एंट्री पर इलेटिलयन पिज्जा व तिब्बती डिस
मलाणा हाइड्रो प्रोजेक्ट के कारण आज सड़क जरी से मलाणा गांव से महज डेढ़ किलोमीटर पीछे तक पहुंच गई है। मलाणा नाले के उस पार हल्की ढलानदार पहाड़ी पर बसा खूबसूरत गांव में बने लकड़ी के घर जब दिखे तो उत्सुकता ओर बढ़ जाती है। मलाणा नाले के करीब चाय कॉफी, पिज्जा  व चौमीन आदि की छोटी-छोटी दुकानें दिखीं तो एक बारगी तो विश्वास ही नहीं हुआ कि मलाणा के द्वार पर इटेलियन पिज्जा व तिब्बतियन डिशिज इतनी सहज सुलभ होंगी।वेट्रन जर्नलिस्ट – आपातकाल में 18 माह रहे जेल में, भाखड़ा बांध विस्थापितों की मुखर आवाज, 50 से ज्यादा सालों से प्रदेश पत्रकार संघ के अध्यक्ष, 25 साल से ‘शब्द मंच’ पत्रिका के मुख्य सम्पादक पंडित जय कुमार


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