बेटी की मौत के बाद मन की शान्ति के लिए भारत आई अमेरिका की ऐमी, मिला जीवन को मकसद, बनी आशा पुरी, कुल्लू के दुर्गम क्षेत्र में साधनारत
कुल्लू से सत्य प्रकाश की रिपोर्ट
इन दिनों साध्वी आशा पुरी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में सधना कर रही है। वह न केवल बांसुरी, गिटार, हरमोनियम और ढोलक बजाने में माहिर हैं, बल्कि उसकी बजाई भजनों की मधुर धुनें अध्यात्म की ओर ले जाती हैं। अमेरिका की ऐमी के साध्वी आशा पुरी बनने की कहानी भी बेहद रोचक है। जवान बेटी की मौत के बाद अवसाद में जी रही ऐनी ऐमी के मन को भारत आकर ऐसी शांति मिली कि उसने सनातन धर्म को अपना कर भगवा वस्त्र धारण कर दीक्षा ले ली। आईए, आप भी जानिए इस साध्वी के जीवन परिवर्तन से जड़ी घटना। हिमाचल प्रदेश की खूबसूरती की कायल ऐमी वर्तमान में कुल्लू में तप कर रही हैं।
बेटी की मौत, जीवन में अवसाद
साल 2009 में अपनी बड़ी बेटी सोना को एक हादसे में खो देने वाली अमेरिका की ऐनी बेहद परेशान थी। उसकी छोटी बेटी होली अभी 13 साल की थी, लेकिन ऐमी को अपना जीवन नीरस लग रहा था और अशांत मन के चलते उसे जीवन में कोई उम्मीद की किरण नहीं दिख रही थी। किश्चियन परिवार में पैदा हुई ऐमी को किसी पारविारिक मित्र ने साल दी कि मन की शांति के लिए वह भारत का भ्रमण करे। इस सलाह को मान कर ऐमी ने बेटी के साथ भारत भ्रमण का मन बनाया और भारत में न केवल ऐमी के मन को शांति मिल गई बल्कि जीवन का मकसद भी मिल गया।
उज्जैन कुम्भ में ली दीक्षा
कृषि स्नातक एवं पर्यावरण व्यवसायी ऐमी ने मई 2010 के उज्जैन कुम्भ में साधू समाज को करीब से समझा और पदम नारायण गिरी से दीक्षा लेकर उनकी शिष्य बन गई। साधू समाज के संस्कार पूरे कर उन्होंने भगवा चोला धारण कर साधू समाज के नियमों को धारण कर लिया। उन्होंने 2013 के इलाहबाद कुम्भ में भाग लिया। वह अब तक छह बार भारत भमण कर चुकी हैं। पिछले लम्बे अरसे से वे कुल्लू में साधना में लीन हैं।
जीवन का ध्येय सेवा
आशा पुरी अमेरिका में एक फांउडेशन संचालित हैं और उनकी बेटी होली नेपाल में गरीब बच्चों की पढाई के लिए संगठन चला रही हैं। आशा पुरी की भगवान शिव में गहरी आस्था है और उसे अपने पूर्व जन्म के बारे में भी बहुत कुछ पता है। वे कहती हैं कि पिछले जन्म में वह भारत में पैदा हुई थीं। साधू का चोला धारण करने के बाद आशा पुरी ने सेवा को अपने जीवन का ध्येय बना लिया। है। वह कई सामाजिक संस्थाओं की मदद कर रही हैं।