तो क्या राजा संसार चंद की दो सुंदर बेटियों को अपनी रानियां बनाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने जीता था कांगड़ा किला? पढिए कांगड़ा की राजकुमारी गुड्डण और बंसो से जुड़ा प्रसंग

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तो क्या राजा संसार चंद की दो सुंदर बेटियों को अपनी रानियां बनाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने जीता था कांगड़ा किला? पढिए कांगड़ा की राजकुमारी गुड्डण और बंसो से जुड़ा प्रसंग
कांगड़ा से विनोद भावुक की रिपोर्ट
तो क्या महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा के राजा संसार चंद की दो सुंदर बेटियों को अपनी रानियां बनाने के लिए कांगड़ा किला जीता था? शोधपरक ऐतिहासिक उपन्यास ‘महाराजा रणजीत सिंह’ में उपन्यासकार तिलक गोस्वामी लिखते हैं कि कांगड़ा पर अधिकार करने के पीछे महाराजा के मन में एक कारण यह भी था। उनको उनके दरबारी लाल सिंह ने बताया था कि कांगड़ा के शासक संसार चंद की दो बहुत सुंदर बेटियां हैं। एक का नाम गुड्डण और दूसरी का नाम बंसो है। दोनों की सुंदरता के चर्चे दूर- दूर तक फैले हुए हैं। कितने ही अमीरजादे और राजकुमार उनको पाने की इच्छा में तड़प रहे हैं। कांगड़ा पर अधिकार करने के साथ महाराजा दोनों राजकुमारियों को अपने महल की शोभा बनाने का सपना देख रहा था।
कांगड़ा पर महाराजा की नजर
ब्रिटिश कंपनी सरकार से अमृतसर में हुई संधि के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह सतलुज नदी के बांई ओर नहीं बढ़ सकते थे। कुछ ही महीनों में उन्होंने डेरा बाबानानक, गुरुदासपुर, दीनानगर और पठानकोट जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर अपना अधिकार जमा लिया। जसरोटा, बसोली और चंबा के शासकों में महाराजा का संरक्षण प्राप्त कर लिया था, जिसके बदले तीनों ने हर साल आठ- आठ हजार रुपये पंजाब सरकार को देना तय हुआ था। अब महाराजा रणजीत सिंह की नजर कांगड़ा पर थी।
कांगड़ा पर गोरखाओं का आक्रमण
महाराजा के अलावा गोरखों की निगाह भी कांगड़ा पर लगी हुई थी। कांगड़ा पर कब्जा करने के लिए गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने कांगड़ा की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। संसार चंद की स्थिति इतनी सशक्त नहीं थी कि वह गोरखाओं का सामना कर पाता। संसार चंद को विवश होकर सहायता के लिए महाराजा रणजीत सिंह की शरण में जाना पड़ा। महाराज रणजीत सिंह इस शर्त पर मदद को तैयार हुआ कि बदले में कांगड़ा का क्षेत्र उनके हवाले कर देगा। संसार चंद को यह शर्त मंजूर नहीं थी।
महाराजा की राजा ने भेजा अपना पुत्र
इधर गोरखा सेना कांगड़ा में प्रवेश कर गई। कई दिनों तक घमासान लड़ाई चलती रही और अमर सिंह थापा ने कांगड़ा का बहुत सा भायग जीत लिया, लेकिन कांगड़ा किला उनके अधिकार में नहीं या सका। गोरखाओं के हमलों से त्राहि मच गई। परेशान संसार चंद एक बार फिर मदद के लिए महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा, लेकिन महाराजा ने पुरानी शर्त दोहरा दी। इस पर संसार चंद ने कहा कि पहले गोरखाओं को कांगड़ा से बाहर निकालो, इसके बाद वह कांगड़ा किला पंजाब सरकार के हवाले कर देगा। अमानत के तौर पर अपना पुत्र अनिरुद्ध चंद महाराजा की सेवा में दे दिया।
जेल में डाला राजकुमार, लिखवाया आदेश
जब गोरखा सेना को इस बात की जानकारी मिली तो वह कांगड़ा का बहुत स क्षेत्र छोड़ वापिस लौट गई। दरअसल गोरखा सेनापति रणजीत सिंह से सीधी टक्कर नहीं लेना चाहता था। अब शर्त के मुताबिक पंजाब सरकार को कांगड़ा किला सौंपने की बारी थी। संसार चंद जब शर्त से रुख बदलने लगा तो महाराजा रणजीत सिंह ने उनके पुत्र अनिरुद्ध चंद को जेल में डाल कर विवश कर उससे एक आदेश लिखवाया कि महाराजा को कांगड़ा किले में प्रवेश करने दिया जाए और प्रवेश के समय उनका भव्य स्वागत किया जाए।
किले पर अधिकार, राजकुमारियों को दिया प्रस्ताव
महाराजा रणजीत सिंह की यह तरकीब काम कर गई। कांगड़ा पहुंचने पर वे बिना किसी रोक टोक के किले में प्रवेश कर गए। अब कांगड़ा का किला और कांगड़ा के हरे- भरे भाग पर महाराजा रणजीत का अधिकार हो गया। महाराजा की उम्र उस वक्त 28 साल थी। महाराजा ने राजा संसार चंद की दोनों बेटियों को अपने पास बुलाया और अपने मन की बात कह डाली। गुड्डन और बंसो भी महाराजा के साहस और शौर्य के किस्से सुन चुकी थीं। दोनों को महाराजा के प्रस्ताव को स्वीकार करने में ही अपना हित दिखा।
दोनों बहनें बनीं महाराजा की रानियां
कुछ दिनों के बाद दोनों बहनें महाराजा की रानियों के रूप में राजमहल में पधारीं। गुड्डन अनेक कलाओं में पारंगत थी। लाहौर में उसने फुलकारी कला और कांगड़ा शैली की चित्रकला के लिए बहुत काम किया। लोकभारत्ती प्रकाशन से 1986 में प्रकाशित अपने ऐतिहासिक उपन्यास ‘महाराजा रणजीत सिंह’ में तिलक गोस्वामी लिखते हैं कि वह तीस साल तक महाराजा की प्रिय रानी के रूप में रही और महाराजा की मृत्यु के बाद सत्ती हो गई।

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