बिलासपुर जिला की कुर्बानी ने पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में खुशहाली लाई, लेकिन बिलासपुर के लोगों को भाखड़ा बांध के बनने के बदले में बहुत कुछ खोना पड़ा। गर्मियों में जब जलस्तर गिर जाता है तो ये मंदिर याद दिलाते हैं कि यहां कभी समृद्ध शहर था। आज से छह दशक पहले 9 अगस्त 1961 को चंदेल वंश द्वारा बसाया गया पुराना शहर गोविंद सागर में समा गया था।मिटने लगा सब पुराना, कंकरीट मेंं बदलता मलाणा : तेजी से अपना वास्तविक स्वरूप खो रहा ऐतिहासिक गांव, बढ़ रहा बाहरी दुनिया का दखल
9 अगस्त 1961 बिलासपुर के इतिहास में
महत्वपूर्ण दिन था जब चंदेल वंश द्वारा बसाया गया पुराना शहर गोविंद सागर में समा गया। राजा दीपचंद ने लगभग 350 वर्ष पूर्व अपने राज्य कहलूर की राजधानी सुन्हाणी से बदलकर सतलुज नदी के पास व्यासपुर में बसाई थी। आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व सतलुज नदी रंगनाथ मंदिर के पास बहती थी। कालांतर में रंगनाथ मंदिर के साथ बसा रंगनाथ मोहल्ला था। पुराना बिलासपुर बेहद प्यारा शहर था।विरासत को संजोने की सिराज बेगम में ऐसी लगन, 84 की उम्र में भी 6 से 14 घंटे चंबा रूमाल की कशीदाकारी में रहती हैं मग्न, कई ऐतिहासिक किस्से व उत्सव चंबा रूमाल में किए चित्रित, अब पिरोना चाहती “रानी सुनयना की बलिदान गाथा”, यह धरोहर कायम रहे युवतियों दे रही मुफ्त प्रशिक्षण

अंतिम राजा आंनद चंद थे, जो सांसद थे और विधायक भी रहे। उनके समय में 1935 के आसपास आंनद महल बना, जिसमें इटली से मंगाया संगमरमर तथा वर्मा से मंगाई विशेष लकड़ी प्रयोग की गई। यह महल सांडु मैदान के एक छोर पर बना था, जिसके बाहर सैनिक पहरा देते थे।अजब-गजब : राजा संसार चंद की जन्मभूमि बीजापुर में स्थित ऐतिहासिक सीता-राम मंदिर, राजा के छाती पर हाथ रखते ही सांस लेने लगी पत्थर की मूर्ति
1889 में 3 लाख से बना रंगमहल
साथ ही था रंगमहल, ऐसा महल हिमाचल में अन्य किसी राज्य में नहीं था। रंगमहल के निर्माण पर लगभग 3 लाख रुपए 1889 में खर्च हुए थे। इस महल की दीवारों पर सोने का काम हुआ था तथा कीमती फानू सदर बार हाल में थे। यह हाल लगभग 60 फुट लंबा तथा 30 फुट चौड़ा था, जिसमें राजा अपने मंत्रियों तथा अधिकारियों से मिलते थे। राजमहल की ड्योढी लगभग 30 फुट ऊंची थी। खिड़कियों में रंग-बिरंगे कांच लगे थे। नए महल में बिजली भी थी जो किसी विशेष अतिथि के आने पर पेट्रोल जेनरेटर से जलती थी। यह महल तीन मंजिला था।ऐतिहासिक नगरी गुलेर के संरक्षण पर लेखक व सेवानिवृत्त अध्यापक नंद किशोर परिमल का लेख ; ‘हो न जाए बड़ी देर, कहीं मिट न जाए गुलेर’
कुछ राजमहल पुराने थे तथा जर्जर हालत में थे। वाघल की रानी का महल था, जहां छात्रावास चलता था। एक अन्य महल कुमारसेन की रानी के नाम पर था। जब भाखड़ा बांध बना तो राज परिवार को 25 लाख रुपए सरकार द्वारा इस अचल संपत्ति की कीमत दी गई तथा राजा बिलासपुर को 60 हजार रुपए वार्षिक प्रिवीर्पस लगा। उनके बेटे गोपाल चंद (टिक्का साहब) को 10 हजार रुपए वार्षिक राशि मिलती थी। आज इन महलों के खंडहर भी नहीं बचे हैं। महल के साथ गोपाल मंदिर नई शैली में बना था, जिसके खंडहर आज भी अतीत के वैभव की याद दिलाते हैं। इस मंदिर की दीवारों पर कैनवास पर बने महाभारत के तैलचित्र 634 फुट आकार में थे, जिन्हें शारदा वकील नामक चित्रकार ने बनाया था। इनमें से दो चित्र सुदर्शना (राजा की दूसरी पत्नी) के निजी संग्रह में लंदन में है। एक तैलचित्र आज भी गोपाल भवन (डियारा सेक्टर-नया बिलासपुर) में लगा है। एक अन्य चित्र 19ए-चाणक्यपुरी दिल्ली में किसी एंबेसी में लगा है। स्मरण रहे कि गोपाल मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की अष्टधातु की प्रतिमा थी, जिस पर 96 तोले सोने का भारी छत्र था, जिसकी आज लगभग 25 लाख रुपए कीमत होती। यह मूर्ति कहां गई, कोई नहीं जानता।अजब गजब – सुलह से झारेट में है ‘कोहड़ी पत्थर’, सारे बाराती बन गए थे पत्थर, ऐतिहासिक कन्या देवी मंदिर से जुडी है इस पत्थर की कहानी, अपनी ही बेटी को ब्याहने पहुँच गया था राजा
सांडु मैदान में लगता था नलवाड़ी मेला
बिलासपुर शहर के डूबने में सबसे बड़ी हानि हुई सांडु मैदान तथा पुरानी इमाारतों के लुप्त होने से। सांडु मैदान हिमाचल का सबसे बड़ा मैदान था। इसी मैदान में नलवाड़ी मेला लगता था। एक छोर पर हाथी स्थल था, जहां पर बाद में राजा ने कहलूर थियेटर चलाया, जिसमें अनेक नाटक मंचित हुए। कालांतर में इसे कहलूर टॉकीज (सिनेमा हाल) का नाम दे दिया गया। शहर में बिजली नहीं थी। सांडु के एक ओर कन्या विद्यालय, रानी उमावती क्लब तथा सरकारी अस्पताल था, साथ ही हनुमान का बड़ा मंदिर था। दूसरी ओर हाई स्कूल तथा महाविद्यालय की इमारत थी, जहां रामलीला होती थी। गेट के साथ कचहरी थी। पाठशाला के साथ ही बाबा बंगाली की मूर्ति लगी थी जिसे अब शहर में स्थापित किया गया है।अंग्रेजों के हाथों गोरखा सेना की हार का गवाह सिरमौर का जैतक किला, किले से जुड़े हैं कई ऐतिहासिक प्रसंग
खंडहर हो गया मंदिरों का शहर
इस शहर को मंदिरों की नगरी कहते थे। यहां 7वीं सदी में खनमुखेश्वर का शिव मंदिर था। यहां पर राजा व प्रजा जल संकट के दौरान शिवलिंग पर जलाभिषेक करते थे, जिसे गड़वा डालना कहा जाता था। इस मंदिर की कुछ मूर्तियां अब शिमला संग्रहालय में हैं। शहर के मध्य थारंगनाथ मंदिर परिसर, जिसमें 5 मंदिर थे। मध्य के मंदिर में शिव-पार्वती जी के विग्रह थे। यह मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना था। अब इन आस्था स्थलों के खंडहर शेष हैं। गोहर बाजार के साथ ही खाकी शाह की मजार हिंदू-मुस्लिम की सांझी आस्था स्थली थी। सतलुज के किनारे था मुरली-मनोहर मंदिर। सांडु मैदान के एक छोर पर घाड़ मंदिर में शिवलिंग की पूजा होती थी। यह मंदिर भी अब आधा गाद में धंस चुका है। पुराने शहर में अनेक प्राकृतिक जलस्त्रोत थे। पंचरूखी, नालेकानौण, अस्सेकानाला, चामडु का कुआं सभी को भाखड़ा बांघ का जलाशय निगल गया।भगवान परशुराम ने बसाया था कुल्लू का सबसे बड़ा ऐतिहासिक गांव निरमंड
आज भी याद आता है पुराना शहर
वर्ष 1961 के बाद शहर उजड़ गया। नए शहर में लोग आकर बसने लगे। उन्हें मात्र 100 वर्गमीटर से 200 वर्गमीटर के प्लाट एक साथ जुड़े आंबटित कर दिए गए। अंबा प्रसाद, ओंकारनाथ, श्रीरामकांगा, रामलालराहु, चूंका, नानकू, कन्हैया लाल, गोपाल, रामलाल, सुखराम आजाद जैसे बुजुर्ग पुराने शहर को आज भी याद करते हैं।नेरटी का देहरा जहां अढ़ाई घड़ी तक खोपड़ी के बिना लड़ा राजा राजसिंह , शाहपुर के नेरटी गांव में चंबा के राजा राजसिंह का शहीदी स्थल, पूजनीय है ‘स्मृति शिला’
प्रस्तुति : घनश्याम गुप्ता
गांव-रती, डाकघर-नेरचौक, जिला मंडी (हि.प्र.)